वैश्विक शांति सूचकांक
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वैश्विक शान्ति सूचकांक यह मापता है कि अमुक राष्ट्र या क्षेत्र कितना शान्तिपूर्ण है। [2] यह शान्तिपूर्णता के आधार पर 163 स्वतन्त्र राज्यों और क्षेत्रों (दुनिया की आबादी का 99.7 प्रतिशत) को रैंक प्रदान करता है। पिछले एक दशक में GPI के मुताबिक वैश्विक हिंसा बढ़ी है शान्तिपूर्णता घटी है। [3]
GPI में किसी देश का स्कोर जितना कम होता है, वह उतना ही शान्तिपूर्ण होता है।
यह रिपोर्ट इंस्टीट्यूट फ़ॉर इकोनॉमिक्स एण्ड पीस (IEP) द्वारा निर्मित की जाती है। इसे इकॉनॉमिस्ट इण्टेलिजेंस यूनिट द्वारा एकत्र किए गए डेटा का प्रयोग करके शान्ति संस्थानों और थिंक टैंक्स के साथ सम्बन्धित शांति विशेषज्ञों के परामर्श से विकसित किया जाता है। इस इण्डेक्स को पहली बार मई 2007 में लॉन्च किया गया था, जिसके बाद की रिपोर्टें सालाना तौर पर जारी की गईं हैं। 2017 में 121 देशों से बढ़कर 2017 में इसने 163 देशों को मापा। अध्ययन की कल्पना ऑस्ट्रेलियाई प्रौद्योगिकी उद्यमी स्टीव किलील द्वारा की गई थी। इसे संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान, दलाई लामा, आर्चबिशप डेसमण्ड टूटू, फ़िनलैण्ड के पूर्व राष्ट्रपति और 2008 के नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता मार्टी आख्तिसारी, नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस, अर्थशास्त्री जेफरी सैक्स, आयरलैण्ड के पूर्व राष्ट्रपति मैरी रॉबिन्सन, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व उप महासचिव जान एलियासन और संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर जैसे व्यक्तियों ने इसका समर्थन किया है। ।
2019 की GPI रिपोर्ट के अनुसार आइसलैण्ड, न्यूज़ीलैण्ड, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क सबसे अधिक शान्तिपूर्ण और अफ़गानिस्तान, सीरिया, दक्षिण सूडान, यमन और इराक सबसे कम शान्तिपूर्ण देश हैं। 2019 में भारत 141वे स्थान पर है, जो 2018 की रैंकिंग से चार स्थान नीचे है। तुलनात्मक रूप से चीन 110वे, अमेरिका 128वे और पाकिस्तान 153वे स्थान पर हैं।[4]
2017 जीपीआई के दीर्घकालिक निष्कर्षों से पता चलता है कि पिछले एक दशक में दुनिया कम शांतिपूर्ण हुई है। पिछले दशक में शांति के वैश्विक स्तर में 2.14 प्रतिशत गिरावट देखने को मिली। साथ ही साथ सबसे अधिक और सबसे कम शांतिपूर्ण देशों के बीच शान्तिपूर्णता में असमानता बढ़ रही है। GPI के सैन्यीकरण डोमेन में दीर्घकालिक कमी, और आतंकवाद का व्यापक प्रभाव भी बढ़ा है (ऐसा इस बूते पर कहा जा रहा है कि पिछले 5 वर्षों में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों की ऐतिहासिक रूप से उच्च संख्या देखने को मिली है)। [2]