शाकम्भरी
उत्तर भारत का एक सिद्धपीठ / From Wikipedia, the free encyclopedia
शाकम्भरी देवी माँ आदिशक्ति जगदम्बा का एक सौम्य अवतार हैं। इन्हें चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। इनका प्राकाट्य स्थान हिमालय की देहरादून के निकट शिवालिक पर्वत श्रृंखला मे विराजमान हैं। जहां पर इन भगवती का भव्य मंदिर बना हुआ है। शताक्षी,शाकम्भरी तथा दुर्गा इन तीनों का प्रादुर्भाव शिवालिक पर्वत ही है।
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शाकम्भरी देवी शाकुम्भरी देवी सहारनपुर | |
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शाकुम्भरी देवी मंदिर | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | शाकम्भरी |
त्यौहार | नवरात्र दुर्गा अष्टमी, चतुर्दशी |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | सहारनपुर |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
देश | भारत |
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वास्तु विवरण | |
निर्माता | महाभारतकाल से पूर्व |
निर्माण पूर्ण | जीर्णोद्धार राजा पिताम्बर सिंह पुण्डीर |
इनका सबसे बड़ा और सबसे प्राचीन सिद्धपीठ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मेे है। ये माँ ही वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी , कामाख्या,शिवालिक पर्वत वासिनी, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी कहलाती है।[1] माँ शाकम्भरी ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी,भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा है।[2] माँ श्री शाकंभरी के देश मे अनेक पीठ है। लेकिन प्रमुख और प्राचीन शक्तिपीठ केवल एक ही है जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे है यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों मे से एक है और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है इसके अलावा दो मंदिर भी है शाकम्भरी माता राजस्थान,को सकरायपीठ कहते हैं जोकि राजस्थान मे है और सांभर पीठ भी राजस्थान मे है ।वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ देवियों मे शाकम्भरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं। नौ देवियों मे माँ शाकम्भरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी माँ का है।
अथान्यदस्ति देवेशि पीठं प्रत्यकारकम। शाकम्भरी यत्र जाता मुनिना त्राणकारणात। तस्य पीठं परम पीठ सर्वपाप प्रणाशनाम गत्वा शाकम्भरी पीठे नत्वा शाकम्भरी तथा। शाकम्भरीति विख्याता सर्वकामेश्वरी तथा। तस्यां सदर्शनादेव सर्वपापै प्रमुच्यते। शाकेश्वरो महादेव प्रत्यक्ष सिद्धिदायक:। पुरात्रैव महादेवी मुनिस्तपसी चाश्रिताम। विग्रहे शतवार्षिके शाकैं स्वांगसमुद्भवे। भरयामास परमा तत: शाकम्भरी मता। प्रत्यक्षसिद्धिदा देवी दर्शनात्पापनाशिनी
स्कंद पुराण के उपरोक्त श्लोकों मे शाकम्भरी क्षेत्र और शाकेश्वर महादेव की प्रत्यक्ष महिमा बताई गई है। जोकि शिवालिक पर्वतमाला मे स्थित शाकम्भरी क्षेत्र है। तीनों पीठों का सम्बन्ध शिवालिक पर्वतमाला पर विराजमान शाकम्भरी देवी से है इसकी गणना प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों मे होती है यहाँ सती का शीश गिरा था। पुराणों में इस देवी पीठ को शक्तिपीठ, परमपीठ, महाशक्तिपीठ और सिद्धपीठ कहा गया है। मुख्य प्रतिमा के दायीं और भीमा एवं भ्रामरी तथा बायीं और शताक्षी देवी की प्राचीन प्रतिमायें विराजमान है पास ही प्रथम पुज्य विघ्नहर्ता गणेश जी विराजमान है इनके प्रसाद में हलवा पूरी, सराल-शाक, फल, सब्जी, मिश्री मेवे और शाकाहारी भोजन का भोग लगता है प्रत्येक वर्ष आश्विन नवरात्र मे सहारनपुर के शिवालिक क्षेत्र मे शाकम्भरी देवी का विशाल मेला लगता है इसके अलावा चैत्र नवरात्र और होली पर माता के मेले लगते हैं। उत्तर भारत की नौ देवी यात्रा मे सबसे अंत मे माँ शाकम्भरी देवी का ही नौवां दर्शन होता है इनके दर्शन पूजन से अन्न, फल, धन, धान्य और अक्षय फल की प्राप्ति होती है। माँ शाकम्भरी देवी जी सहारनपुर की अधिष्ठात्री देवी हैहै सहारनपुर मे विराजमान माँ शाकम्भरी देवी मंदिर उत्तर भारत का सबसे बड़ा सिद्धपीठ है।