शनि (ज्योतिष)
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव या शनि ग्रह / From Wikipedia, the free encyclopedia
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शनि | |
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अन्य नाम | यमाग्राज , छायानन्दन , सूर्यपुत्र , काकध्वज आदि। |
संबंध | ग्रह |
निवासस्थान | शनि मण्डल |
ग्रह | शनि ग्रह |
मंत्र |
ॐ शं शनैश्चराय नमः॥ |
दिवस | शनिवार |
जीवनसाथी | नीलादेवी अथवा धामिनी |
माता-पिता |
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भाई-बहन | यमराज , यमुना , वैवस्वत मनु , सवर्णि मनु , कर्ण , सुग्रीव , रेवन्त , भद्रा , भया , नास्त्य , दस्र , रेवन्त और ताप्ती |
सवारी | नौ सवारियां: हाथी, घोड़ा, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा , गिद्ध , शेर और कौआ[2] |
शनि ग्रह के प्रति अनेक आख्यान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्यदेव का सबसे बड़ा पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी, शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियाँ और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि हैं।
वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:।
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥
भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि, महात्मा कहते हैं।