सिंधु घाटी सभ्यता
दक्षिण एशिया में कांस्य युगीन प्राचीन सभ्यता (ल. ३३०० से १३०० ई.पू) / From Wikipedia, the free encyclopedia
सिन्धु घाटी सभ्यता (ल. ३३०० – १३०० ई.पू) प्राचीन भारत की एक सभ्यता थी।[1] यह सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। सिन्धु घाटी सभ्यता दक्षिण एशिया मे सिंधु नदी और प्राचीन सरस्वती नदी क्षेत्र मे विस्तृत थी।[2] इस सभ्यता को सिंधु-सरस्वती सभ्यता[3] और हड़प्पा सभ्यता[4] के नाम से भी जाना जाता है। इस सभ्यता का प्रारंभिक विकास (ल. ७५०० से ३३०० ई.पू के बीच[5]) सिन्धु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती नदी[6]) के किनारे हुआ। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा और राखीगढ़ी इसके प्रमुख केन्द्र थे।[7] वर्ष २०१४ में भिरड़ाणा को सिन्धु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है, जो लगभग ७५०० से ६५०० ई.पू के बीच बसा था।[8][9][10] ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यन्त विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े थे।[10]
अन्य नाम | सिंधु-सरस्वती सभ्यता हड़प्पा सभ्यता |
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भौगोलिक विस्तार | दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान में मुख्य रूप तथा अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्र में सिंधु तथा उसकी उपनदियों (सहायक नदियों) के आसपास इस सभ्यता का विकास हुआ। |
काल | कांस्य युग |
तिथियाँ | लगभग 2600ई.पू. से 1900 ई.पू. |
उदहारण स्थल | हड़प्पा |
मुख्य स्थल | हड़प्पा, मुअनजो-दड़ो, धोलावीरा, राखीगढ़ी, लोथल, कालीबंगा, बनावली, नागेश्वर और रंगपुर |
पूर्ववर्ती | मेहरगढ़ भिरड़ाना |
परवर्ती | चित्रित ग्रे वेयर संस्कृति वैदिक सभ्यता |
७वीं शताब्दी में पहली बार जब लोगो ने पंजाब प्रान्त में ईंटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहाँ से बनी बनाई ईंटें मिली जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया उसके बाद १८२६ में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने १८५६ में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। १८५६ में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बन्धुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में १८६१ में एलेक्जेण्डर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गयी। १९०२ में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व राखलदास बेनर्जी को मोहनजोदड़ो का खोजकर्ता माना गया।
यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल [सिन्धु नदी]] और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है।