इल्हाम
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इलहाम या दिव्य ज्ञान धर्मशास्त्र तथा प्रत्ययवादी धार्मिक दर्शन की आधारभूत अवधारणा है। इलहाम रहस्यमय प्रबोधन की संक्रिया में अलौकिक यथार्थ के अतीन्द्रिय संज्ञान की अभिव्यक्ति है। इलहाम की चर्चा मुख्यतः सामी धर्म के पवित्रग्रंथों (बाइबिल, क़ुरान आदि) में की गयी है। समसामयिक धर्मशास्त्र यह दावा करते हुए कि इलहाम तर्कबुद्धि के विपरीत नहीं है, इस विचार को आधुनिक रूप देने का प्रयास करता है। ऐसी मान्यता है कि, समकालीन धार्मिक धाराओं में इलहाम के प्रत्यय के कारण ईश्वरवाद की दार्शनिक पैरवी में अतर्कबुद्धिवाद की भूमिका में वृद्धि हो रही है।[2]