2000 के दशक के उत्तरार्द्ध की आर्थिक मंदी
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2000 के दशक के उत्तरार्द्ध की आर्थिक मंदी (या ग्रेट रिसेशन (भयंकर मंदी)[1][2]) एक गंभीर आर्थिक मंदी थी जो संयुक्त राज्य अमेरिका में दिसंबर 2007[3] में शुरू हुई और जून 2009 में समाप्त हुई (यू.एस. नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनोमिक रिसर्च के अनुसार)। [4] यह औद्योगिक दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में फैला जिसकी वजह से आर्थिक गतिविधियों स्पष्ट रूप से कमी आई। यह वैश्विक आर्थिक मंदी एक ऐसे आर्थिक माहौल में अपने पाँव पसारती रही है जिसकी पहचान विभिन्न प्रकार के असंतुलनों से होती है और 2007-2010 के वित्तीय संकट के प्रकोप से एकदम भड़क उठी. जुलाई 2009 में घोषणा की गयी कि काफी बड़ी संख्या में अर्थशास्त्रीयों मानना है कि आर्थिक मंदी संभवतः समाप्त हो गयी है।[5][6] हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका में अपेक्षित जीडीपी वृद्धि की लगातार दो तिमाहियों को वास्तव में 2009 के अंत से पहले नहीं देखा गया।
इस लेख के विषय पर किसी विशेषज्ञ के ध्यान की जरूरत हैं। जानकारी के लिए वार्ता पृष्ठ देखें। विकिपरियोजना Economics विशेषज्ञ की भर्ती में मदद करने में सक्षम हो सकता है। (अक्टूबर 2009) |
यह लेख आसानी से पढ़ने के लिये बहुत लम्बा है। कृपया लेख के कई लेखों में टुकड़े करें और यहाँ केवल उनका सारांश दें। (सितम्बर 2010) |
संयुक्त राज्य अमेरिका में वित्तीय संकट का संबंध सरकार के प्रोत्साहन से वित्तीय संस्थानों द्वारा लापरवाही से कर्ज दिए जाने के चलन और रियल एस्टेट संबंधी बंधकों के प्रतिभूतिकरण की बढ़ती प्रवृत्ति से था।[7] अमेरिकी बंधक-समर्थित प्रतिभूतियों में, जहाँ इनका मूल्यांकन करने में काफी जोखिम था लेकिन दुनिया भर में इनकी मार्केटिंग की गयी थी। एक और अधिक बड़े पैमाने के क्रेडिट बूम ने रियल एस्टेट और शेयरों में वैश्विक सट्टेबाजी के बुलबुले को फलने-फूलने का मौक़ा दिया जिसने जोखिमपूर्ण कर्ज देने की प्रथाओं को बढ़ावा देने में मदद की। [8][9] तेल और खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी से हुई वृद्धि ने अनिश्चित वित्तीय स्थिति को और भी अधिक जटिल बना दिया था। 2007 में सब-प्राइम लोन के घाटों के बढ़ने से संकट की शुरुआत हुई और इसने अन्य जोखिम भरे ऋणों एवं संपत्तियों की अत्यधिक-बड़ी हुई कीमतों को उजागर किया। ऋण के घाटों के बढ़ने और 15 सितम्बर 2008 को लीमैन ब्रदर्स के पतन के साथ अंतर-बैंक ऋण बाजार पर एक बड़ी घबड़ाहट फ़ैल गयी। शेयरों और हाउसिंग की कीमतों में गिरावट के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में कई बड़े सुव्यवस्थित निवेश एवं वाणिज्यिक बैंकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा और यहाँ तक की वे दिवालियेपन की कगार तक पहुंच गए, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर सार्वजनिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गयी।
वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार में तेजी से गिरावट आई है, बेरोजगारी बढ़ रही है और उपयोगी वस्तुओं की कीमतों में भारी कमी आई है। दिसंबर 2008 में राष्ट्रीय आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (एनबीईआर) ने यह घोषणा की थी कि संयुक्त राज्य अमेरिका दिसंबर 2007 के बाद से मंदी के दौर से गुजर रहा था।[10] कई अर्थशास्त्रियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि 2011 तक इसमें सुधार नहीं देखा जा सकेगा और यह कि यह आर्थिक मंदी 1930 के दशक की भारी मंदी से भी बुरी होगी। [11][12] अर्थशास्त्र में नोबेल मेमोरियल पुरस्कार जीतने वाले पॉल रोबिन क्रुगमैन ने इस पर एक बार यह टिप्पणी की थी कि यह "एक दूसरी भारी मंदी" की शुरुआत जैसा मालूम होता है।[13] संकट की स्थिति तक की परिस्थितियाँ जिनकी विशेषता संपत्ति की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि और इससे जुड़ी आर्थिक मांग में एक बड़ी उछाल हैं, इन्हें आसानी से उपलब्ध ऋण की विस्तारित अवधि,[14] अपर्याप्त विनियमन और पर्यवेक्षण[15] या बढ़ती हुई असमानता[16] का नतीजा समझा जाता है।
इस आर्थिक मंदी ने आर्थिक मंदी की परिस्थितियों का सामना करने संबंधी कीनेशियन के आर्थिक विचारों में नए सिरे से रुचि जगा दी है। आर्थिक मंदी और वित्तीय जोखिमों से निबटने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों में काफी ढील दी गयी है। अर्थशास्त्रियों की सलाह है कि स्टिमुलस (आर्थिक सहायता) को तभी वापस लिया जाना चाहिए जब अर्थव्यवस्थाएं इस हद तक संभल जाएं कि "एक स्थायी विकास का रास्ता दिखाई देने लगे".[17][18][19]