बोरोबुदुर
विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध विहार / From Wikipedia, the free encyclopedia
बोरोबुदूर विहार अथवा बरबुदूर इंडोनेशिया के मध्य जावा प्रान्त के मगेलांग नगर में स्थित 750-850 ईसवी के मध्य का महायान बौद्ध विहार है। यह आज भी संसार में सबसे बड़ा बौद्ध विहार है। छः वर्गाकार चबूतरों पर बना हुआ है जिसमें से तीन का उपरी भाग वृत्ताकार है। यह 2,679 उच्चावचो और 504 बुद्ध प्रतिमाओं से सुसज्जित है।[1] इसके केन्द्र में स्थित प्रमुख गुंबद के चारों और स्तूप वाली 72 बुद्ध प्रतिमायें हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा[2][3] और विश्व के महानतम बौद्ध मन्दिरों में से एक है।[4]
बोरोबुदूर | |
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यूनेस्को विश्व धरोहर बोरोबुदूर | |
सामान्य विवरण | |
वास्तुकला शैली | स्तूप और चण्डी |
शहर | मगेलांग के निकट, मध्य जावा |
राष्ट्र | इंडोनेशिया |
निर्देशांक | 7°36′29″S 110°12′14″E |
निर्माण सम्पन्न | c. AD 825 |
ग्राहक | शैलेन्द्र |
योजना एवं निर्माण | |
वास्तुकार | गुनाधर्मा |
आधिकारिक नाम: बोरोबुदुर टेम्पल कंपाउंड्स | |
प्रकार: | सांस्कृतिक |
मापदंड: | i, ii, vi |
अभिहीत: | १९९१ (१५वें सत्र में) |
सन्दर्भ क्रमांक | ५९२ |
राज्य पार्टी: | इंडोनेशिया |
क्षेत्र: | एशिया-प्रशांत |
इसका निर्माण ९वीं सदी में शैलेन्द्र राजवंश के कार्यकाल में हुआ। विहार की बनावट जावाई बुद्ध स्थापत्यकला के अनुरूप है जो इंडोनेशियाई स्थानीय पंथ की पूर्वज पूजा और बौद्ध अवधारणा निर्वाण का मिश्रित रूप है।[4] विहार में गुप्त कला का प्रभाव भी दिखाई देता है जो इसमें भारत के क्षेत्रिय प्रभाव को दर्शाता है मगर विहार में स्थानीय कला के दृश्य और तत्व पर्याप्त मात्रा में सम्मिलित हैं जो बोरोबुदुर को अद्वितीय रूप से इंडोनेशियाई निगमित करते हैं।[5][6] स्मारक गौतम बुद्ध का एक पूजास्थल और बौद्ध तीर्थस्थल है। तीर्थस्थल की यात्रा इस स्मारक के नीचे से आरम्भ होती है और स्मारक के चारों ओर बौद्ध ब्रह्माडिकी के तीन प्रतीकात्मक स्तरों कामधातु (इच्छा की दुनिया), रूपध्यान (रूपों की दुनिया) और अरूपध्यान (निराकार दुनिया) से होते हुये शीर्ष पर पहुँचता है। स्मारक में सीढ़ियों की विस्तृत व्यवस्था और गलियारों के साथ 1460 कथा उच्चावचों और स्तम्भवेष्टनों से तीर्थयात्रियों का मार्गदर्शन होता है। बोरोबुदुर विश्व में बौद्ध कला का सबसे विशाल और पूर्ण स्थापत्य कलाओं में से एक है।[4]
साक्ष्यों के अनुसार बोरोबुदूर का निर्माण कार्य ९वीं सदी में आरम्भ हुआ और 14वीं सदी में जावा में हिन्दू राजवंश के पतन और जावाई लोगों द्वारा इस्लाम अपनाने के बाद इसका निर्माण कार्य बन्द हुआ।[7] इसके अस्तित्व का विश्वस्तर पर ज्ञान 1814 में सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा लाया गया और इसके इसके बाद जावा के ब्रितानी शासक ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। बोरोबुदुर को उसके बाद कई बार मरम्मत करके संरक्षित रखा गया। इसकी सबसे अधिक मरम्मत, यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्द करने के बाद 1975 से 1982 के मध्य इंडोनेशिया सरकार और यूनेस्को द्वारा की गई।[4]
बोरोबुदूर अभी भी तीर्थयात्रियों के लिए खुला है और वर्ष में एक बार वैशाख पूर्णिमा के दिन इंडोनेशिया में बौद्ध धर्मावलम्बी स्मारक में उत्सव मनाते हैं। बोरोबुदूूर इंडोनेशिया का सबसे अधिक दौरा किया जाने वाला पर्यटन स्थल है।[8][9][10]