कोरियाई साहित्य
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चीनी आदि भाषाओं के प्राचीन साहित्य की भाँति कोरियायी के प्राचीन साहित्य में भी धार्मिक कर्मकांड की मुख्यता देखने में आती है। नीतिशास्त्र, आचारशास्त्र, तथा कनफ्यूशियस और बौद्धधर्म (ईसवी सन् 369 में चीन से होकर प्रविष्ट) के उपदेश इस साहित्य में प्रधानता से पाए जाते हैं।
14वीं शताब्दी से 19 वीं शताब्दी ईसवी तक कोरियायी साहित्य की दिन पर दिन उन्नति होती गई। 14वीं शताब्दी में कासन नामक एक बौद्ध भिक्षु ने हौंग किल डोंग के साहसपूर्ण कृत्य नामक उपन्यास लिखा। 1478 में सुंगजोंग ने कोरियाई भाषा के आदि से अंत तक सर्वश्रेष्ठ साहित्य का संकलन करने के लिये 23 विद्वानों का एक आयोग नियुक्त किया जिसके फलस्वरूप तौंगमुन नाम का एक संकलन तैयार हुआ जिसमें 500 लेखकों की रचनाएँ संकलित की गईं। इस काल में इतिहास, आयुर्वेद, कृषि आदि पर भी साहित्य का निर्माण हुआ। हानगूल वर्णमाला का आविष्कार भी इसी समय हुआ। 18वीं सदी में कोरिया में ईसाई धर्म का प्रवेश हुआ। इस समय जन्म, विवाह, मृत्यु, अंत्येष्टि क्रिया, पितृ पूजा और आतिथ्य आदि के संबंध में साहित्य का निर्माण हुआ। 18वीं 19 वीं सदी में कनफ्यूशियस धर्म के आधार पर अनेक उपन्यासों, कहानियों और नाटकों की रचना हुई। वसंत ऋ तु की सुगंध नामक उपन्यास में एक पतिव्रता स्त्री का सुंदर चित्रण उपस्थित किया गया। यह साहित्य कोरिया की नई वर्णमाला में लिखा गया।