सुकरात
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सुकरात ( युनानी-Σωκράτης ; 470-399 ईसा पूर्व ) एथेंस के एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक थे , जिन्हें पाश्चात्य दर्शन के संस्थापक और पहले नैतिक दार्शनिकों में से एक के रूप में श्रेय दिया जाता है।[1] [2]सुकरात ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, इसलिये उन्हें, मुख्य रूप से शास्त्रीय लेखकों , विशेष रूप से उनके छात्र प्लेटो और ज़ेनोफ़न के मरणोपरांत वृतान्तों के माध्यम से जाना जाता है।[3] प्लेटो द्वारा रचित ये वृत्तांत, संवाद के रूप में लिखे गए हैं , जिसमें सुकरात और उनके वार्ताकार, प्रश्न और उत्तर की शैली में किसी विषय की समिक्षा करते हैं; उन्होंने सुकरातीय संवाद, साहित्यिक शैली को जन्म दिया। एथेनियन समाज में सुकरात एक विवादित व्यक्ति थे, इतना अधिक कि, हास्य नाटककारों के नाटकों में उनका अक्सर मजाक उड़ाया जाता था (अरिस्टोफेन्स् द्वारा रचित नेफेलाइ ("बादलें") उसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है।[4]) 399 ईसा पूर्व में, उन पर युवाओं को भ्रष्ट करने और धर्मपरायणहीनता करने का आरोप लगाया गया था । एक दिन तक चले अभियोग के बाद , उन्हें मृत्यु की सजा सुनाई गई थी ।
व्यक्तिगत जानकारी | |
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जन्म | ल. 470 ई॰पू॰ देमे, अलोपिके, एथेंस |
मृत्यु | 399 ई॰पू॰ (लगभग 71 वर्ष) एथेंस मृत्युदंड, जहर पिलाकर |
जीवनसाथी(याँ) | क्सान्थिप्पे,मिर्तो |
बच्चों के नाम | लैम्प्रोकल्स, मेनेक्सेनस, सोफ्रोनिस्कस |
परिवार | सोफ्रोनिस्कस (पिता), फेनारेटे (माता), पैट्रोकल्स (सौतेला भाई) |
वृत्तिक जानकारी | |
युग | प्राचीन यूनानी दर्शन |
क्षेत्र | पाश्चात्य दर्शन |
विचार सम्प्रदाय (स्कूल) | श्रेण्य यूनानी दर्शन |
उल्लेखनीय छात्र |
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मुख्य विचार | ज्ञानमीमांसा, नीतिशास्त्र, उद्देश्यवाद |
प्रमुख विचार |
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प्रभाव
प्रोदिकुस, अनक्सागोरस, आर्केलौस, दियोतिमा, डैमन, पारमेनीडेस
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प्रभावित
वस्तुतः बाद के सभी पाश्चात्य दर्शन, विशेष रूप से उनके अनुयायी, उदाहरण के लिए, प्लेटो, जे़नोफोन्, अन्तिस्ठेनेस, अरिस्तिप्पुस, मेगरा के यूक्लिड, फीदो
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प्राचीन काल से बचे प्लेटो के संवाद सुकरात के सबसे व्यापक उल्लेखों में से हैं। ये संवाद तर्कवाद और नैतिकता सहित दर्शन के क्षेत्रों के लिए सुकरातीय दृष्टिकोण का प्रदर्शन करते हैं । प्लेटोनीय सुकरात ने सुकरातीय पद्धति या एलेन्चस को प्रतिपादित किया जो, युक्तिपुर्ण संवाद (Argumentative dialogue), या द्वंद्वात्मकता के माध्यम से दार्शनिक विमर्श करता है। पूछताछ की सुकरातीय पद्धति , छोटे प्रश्नों और उत्तरों का उपयोग करते हुए संवाद में आकार लेती है, जो उन प्लेटोनिक ग्रंथों के प्रतीक हैं, जिनमें सुकरात और उनके वार्ताकार किसी मुद्दे या अमूर्त अर्थ के विभिन्न पहलुओं की विश्लेषण करते हैं,( जो आमतौर, पर किसी सद्गुणों में से, एक से संबंधित होते हैं), और स्वयं को गतिरोध में पाते हैं। जो उन्होंने क्या सोचा था कि वे समझ गए हैं,वे उसको परिभाषित करने में पूरी तरह से असमर्थ रहते हैं । सुकरात अपनी पूर्ण अज्ञानता की घोषणा के लिए जाने जाते हैं ; वह कहते थे कि केवल एक चीज जिसे वह जानते थे, वह यह थी उनकी अज्ञानता का बोध दर्शनशास्त्र का पहला कदम है।
दार्शनिक सुकरात वैसे ही बने हुए हैं, जैसे वे अपने जीवनकाल में थे, एक पहेली, एक अचूक व्यक्ति, जो कुछ भी नहीं लिखे जाने के बावजूद, उन्हें, उन मुट्ठी भर दार्शनिकों में से एक माना जाता है जिन्होंने हमेशा के लिए दर्शनशास्त्र की परिकल्पना बदल दी। उनके बारे में, हमारी सारी जानकारी पुरानी है और इसमें से अधिकांश अत्यंत विवादास्पद है, लेकिन तब भी, एथेनियन लोकतंत्र के हाथों से उसका परीक्षण और तदोपरान्त मृत्यु, दर्शनशास्त्र के अधिविद्य विधा का संस्थापक मिथक है,एवं उसका प्रभाव दर्शन से कहीं दूर,हर युग में, महसूस किया गया है।
सुकरात ने बाद की पुरातनता में दार्शनिकों पर एक मजबूत प्रभाव डाला और आधुनिक युग में भी ऐसा करना जारी रखा है । सुकरात का अध्ययन मध्ययुगीन और इस्लामी विद्वानों द्वारा किया गया था और विशेष रूप से मानवतावादी आंदोलन के भीतर इतालवी पुनर्जागरण के विचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । सुकरात में रुचि बेरोकटोक जारी रही, जैसा कि सोरेन कीर्केगार्ड और फ्रेडरिक नीस्चे के कार्यों में परिलक्षित होता है । कला, साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति में सुकरात के चित्रण ने उन्हें पश्चिमी दार्शनिक परंपरा में एक व्यापक रूप से ज्ञात व्यक्ति बना दिया है।