सीवान
बिहार में शहर, भारत / From Wikipedia, the free encyclopedia
सीवान(𑂮𑂲𑂫𑂰𑂢) या सिवान(𑂮𑂱𑂫𑂰𑂢) भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में सारण प्रमंडल के अंतर्गत एक शहर है। यह सीवान ज़िले का मुख्यालय है, जो बिहार के पश्चिमोत्तरी छोर पर उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती ज़िला है। सिवान दाहा नदी के किनारे बसा है। इसके उत्तर तथा पूर्व में क्रमश: बिहार का गोपालगंज तथा सारण जिला तथा दक्षिण एवं पश्चिम में क्रमश: उत्तर प्रदेश का देवरिया और बलिया जिला है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा॰ राजेन्द्र प्रसाद तथा कई अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि एवं कर्मस्थली के लिए सिवान को जाना जाता है।
सीवान/𑂮𑂱𑂫𑂰𑂢 | |||||||
— शहर — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | बिहार | ||||||
पुलिस अधीक्षक | Sri Shailesh Kumar Sinha, IPS | ||||||
जिलाधिकारी | Mr. Mukul Kumar Gupta, IAS | ||||||
जनसंख्या • घनत्व |
2,714,349 (2001 के अनुसार [update]) • 1,223/किमी2 (3,168/मील2) | ||||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
2,219 km² (857 sq mi) • 64 मीटर (210 फी॰) | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: [http:// ] |
सिवान का क्षेत्र सारण जिले के अंतर्गत आता था। छठी शताब्दी से लेकर वर्तमान समय तक लगातार समस्त सारण क्षेत्र पर बघोचिया भूमिहार राजवंश का शासन कायम है। शासन के सभी राज्यों के नामों में बघोच साम्राज्य जिसका केन्द्र उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में था, कल्याणपुर राज्य जो मुगल शासनकाल तक कायम था, हुस्सेपुर राज्य जिसके 99 वें शासक राजा फतेह बहादुर शाही ने बक्सर युद्ध के बाद अंग्रेजों को कर देने से मना कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों और राजा फतेह बहादुर शाही के बीच युद्ध हुआ और राजा फतेह बहादुर शाही की हार हो गई। इस हार के बाद हुस्सेपुर राज्य का पतन हो गया और हथुआ राज्य जिसे हुस्सेपुर राज्य के राजा फतेह बहादुर शाही के चचेरे भाई बसंत शाही ने स्थापित किया था, जिसके अंतर्गत सारण का क्षेत्र आता था। हुस्सेपुर राज्य से निर्वासित होने के बाद राजा फतेह बहादुर शाही ने सन् १७६७ ईस्वी में उत्तर प्रदेश में एक नए राज्य " तमकुही राज्य" की स्थापना किया जो अभी तक कायम है। महाराजगंज जो सिवान जिले का एक अनुमण्डल है, इसकी स्थापना हथुआ महाराज ने सन् १८३६ इस्वी में किया था। को “अली बक्स” जो इस क्षेत्र के जागीरदारों के पूर्वजों में से एक , के नाम के कारण “अलीगंज सावन’ के नाम से भी जाना जाता है। सिवान के नामकरण के बारे में एक और कहानी भी है भोजपुरी भाषा में, ‘सिवान’ शब्द ‘किसी स्थान की सीमा’ को दर्शाता है। यह नेपाल की दक्षिणी सीमा का निर्माण करता है, इसलिए नाम। जो कुछ भी असली कारण है, सिवान के इतिहास के इतिहास में बहुत महत्व है, न कि सिर्फ आधुनिक इतिहास बल्कि प्राचीन इतिहास भी।
इसके साथ की सीवान का राजनैतिक हलचल में काफ़ी सक्रिय रहा। मसलन मोहम्मद शाहबुद्दीन, वामपंथ छात्र कॉमरेड चंद्रशेखर प्रसाद वगैरा सीवान 90s से 20s दशक में बीच राजनीति हलचल अपनी चरम सीमा पर थी।यही से सन 1925 से स्वतंत्रता संघर्ष अपने चरम पर पहुंच रहा था ,सन 1925-30 मे जब मैरवा ट्रेन की पटरियों को उखाड़ा गया, उस समय आक्रोशित लोगों का नेतृत्व मैरवाँ के उपाध्याछापर निवासी 90 वर्षीय पं॰ पूजाराम उपाध्याय कर रहे थे। जो रियासतकालीन जमीनदार थे।इस आंदोलन मे उनके साथ एक सुव्यवस्थित मंडली थी, जिसमें लोगों को सूचना पहुचाने एवं एकत्रित करने की जिम्मेदारी उनके भाई पं॰राजाराम उपाध्याय की थी।गुप्तरूप से सूचनाएं रात में लोगों के घर जा के बताई जाती थी।जिसके लिए नवयुवक रात को लोगों के दरवाजे पर घूम-घूम बताते थे।इसका संचालन विन्ध्यवासिनी सिंह, हीरानाथ उपाध्याय, बैजनाथ प्रसाद करते थे।