सातवाहन
प्राचीन भारत का हिंदू साम्राज्य (ल. 3री शताब्दी ईसा पूर्व – 2री शताब्दी ईसवी) / From Wikipedia, the free encyclopedia
सातवाहन राजवंश या सातवाहन साम्राज्य, जिसे प्राचीन भारतीय साहित्य में आंध्र राजवंश और आंध्र-सातवाहन राजवंश भी कहा गया हैं। यह प्राचीन भारत का हिन्दू राजवंश था। सातवाहन राजाओं ने 150 वर्षों तक शासन किया। सातवाहन वंश की स्थापना 230 से 60 ईसा पूर्व के बीच राजा ने की थी।[5] सातवाहन राजवंंश के सीमुक, शातकर्णी प्रथम, गौतमी पुत्र शातकर्णी, वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी, यज्ञश्री शातकारणी प्रमुख राजा थे। प्रतिष्ठान सातवाहन वंश की राजधानी रही , यह महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर जिले में है।[6] सातवाहन साम्राज्य की राजकीय भाषा संस्कृत और मराठी प्राकृत थी, जो ब्राह्मी लिपि मे लिखि जाती थी। इस समय अमरावती कला का विकास हुआ था। सातवाहन राजवंश के समय "समाज मातृसत्तात्म" था, अर्थात राजाओं के नाम उनकी माता के नाम पर (जैसे, गौतमीपुत्र शातकारणी) रखने की प्रथा थी, लेकिन सातवाहन राजकुल पितृसत्तात्मक था, क्योंकि राजसिंहासन का उत्तराधिकारी वंशानुगत ही होता था। [7]
सातवाहन साम्राज्य आंध्र-सातवाहन राजवंश | |||||||||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
ल. 00 से 60 ई.पू – ल. 220 इस्वी | |||||||||||||||||||
सातवाहन साम्राज्य का अधिकतम विस्तार[2] | |||||||||||||||||||
राजधानी | पैठण | ||||||||||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | संस्कृत महाराष्ट्री प्राकृत | ||||||||||||||||||
धर्म | हिंदू धर्म[3][4] | ||||||||||||||||||
सरकार | राजतंत्र | ||||||||||||||||||
सम्राट | |||||||||||||||||||
• ल. 230–207 ई.पू. | सीमुक (प्रथम) | ||||||||||||||||||
• ल. 194–185 ई.पू. | शातकर्णी प्रथम | ||||||||||||||||||
• ल. 106–130 इस्वी | गौतमी पुत्र शातकर्णी | ||||||||||||||||||
• ल. 210–220 इस्वी | यज्ञश्री शातकर्णी (अन्तिम) | ||||||||||||||||||
ऐतिहासिक युग | प्राचीन भारत | ||||||||||||||||||
• स्थापित | ल. 228 से 60 ई.पू. के बीच | ||||||||||||||||||
• अंत | ल. 220 इस्वी | ||||||||||||||||||
मुद्रा | पण | ||||||||||||||||||
| |||||||||||||||||||
अब जिस देश का हिस्सा है | भारत पाकिस्तान |
सातवाहन राजवंश के द्वारा अजन्ता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण किया गया था। सातवाहन राजाओं ने चांदी, तांबे, सीसे, पोटीन और कांसे के सिक्कों का प्रचलन किया। ब्राह्मणों को 'भूमि दान' करने की प्रथा का आरम्भ सर्वप्रथम सातवाहन राजाओं ने किया था, जिसका उल्लेख नानाघाट अभिले ख में है।[8][9]