शतरंज के नियम
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शतरंज के नियम (जिसे शतरंज के सिद्धांत भी कहते हैं), शतरंज के खेल को विनियमित करने वाले नियम होते हैं। यद्यपि शतरंज की ठीक-ठीक उत्पत्ति निश्चित नहीं है किंतु यह ज्ञात है कि इसके आधुनिक नियम पहली बार 16वीं शताब्दी के दौरान भारत में विकसित हुए. 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक, अपने आधुनिक रूप में आने तक, नियम लगातार थोड़े-थोड़े बदलते रहे। शतरंज के नियमों में स्थानों के आधार पर भी अलग-अलग परिवर्तन हुए. आज Fédération Internationale des Échecs (एफआईडीई (FIDE)), जिसे विश्व शतरंज संगठन (वर्ल्ड चेस ऑर्गेनाइजेशन) भी कहा जाता है, कुछ राष्ट्रीय संगठनों द्वारा अपने लिए किए गए हल्के परिवर्तनों के साथ, मानक नियम तय करता है। त्वरित शतरंज, पत्राचार शतरंज, ऑनलाइन शतरंज तथा चेस वैरिएंट्स (रूपांतर शतरंज) के नियमों में अंतर पाया जाता है।
शतरंज दो लोगों द्वारा 6 प्रकार के 32 मोहरों (प्रत्येक खिलाड़ी के लिए 16) के साथ बिसात पर खेला जाने वाला एक खेल है। प्रत्येक प्रकार का मोहरा खास तरीके से आगे बढ़ता है। खेल का लक्ष्य शह और मात होता है अर्थात विरोधी खिलाड़ी के बादशाह को अपरिहार्य रूप से बंदी बना लेना होता है। यह आवश्यक नहीं कि खेल शह देकर मात की स्थिति में ही खत्म हो, बल्कि खिलाड़ी प्राय:, अपनी हार में यकीन हो जाने पर हार मान कर खेल छोड़ भी सकता है। इसके अतिरिक्त खेल की ड्रॉ स्थिति में खत्म होने के भी कई तरीके होते हैं।
मोहरों के मौलिक चालों के अलावा खेल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण, समय नियंत्रण, खिलाड़ियों के आचार-व्यवहार, शारीरिक अक्षमता वाले खिलाड़ियों के समायोजन, शतरंज की संकेत पद्धति में चालों का ब्योरा रखने तथा खेल के दौरान की जाने वाली अनियमितताओं के लिए बरती जाने वाली प्रक्रियाओं को भी नियमों द्वारा विनियमित किया जाता है।