विलियम जोंस (भाषाशास्त्री)
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सर विलियम जोंस (28 सितम्बर 1746 – 27 अप्रैल 1794)), अंग्रेज प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री तथा प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों का प्रारंभकर्ता।
विलियम जोंस | |
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A steel engraving of Sir William Jones, after a painting by Sir Joshua Reynolds | |
Puisne judge of the Supreme Court of Judicature at Fort William in Bengal | |
पद बहाल 22 October 1783[1] – 27 April 1794[2] | |
जन्म | 28 सितम्बर 1746 Westminster, London |
मृत्यु | 27 अप्रैल 1794(1794-04-27) (उम्र 47) Calcutta |
लंदन में 28 सितंबर 1746 को जन्म। हैरो और आक्सफर्ड में शिक्षा प्राप्त की। शीघ्र ही उसने इब्रानी, फारसी, अरबी और चीनी भाषाओं का अभ्यास कर लिया। इनके अतिरिक्त जर्मन, इतावली, फ्रेंच, स्पेनी और पुर्तगाली भाषाओं पर भी उसका अच्छा अधिकार था। नादिरशाह के जीवनवृत का फारसी से फ्रेंच भाषा में उसका अनुवाद 1770 में प्रकाशित हुआ। 1771 में उसने फारसी व्याकरण पर एक पुस्तक लिखी। 1774 में "पोएसिअस असिपातिका कोमेंतेरिओरम लिबरीसेम्स" और 1783 में "मोअल्लकात" नामक सात अरबी कविताओं का अनुवाद किया। फिर उसने पूर्वी साहित्य, भाषाशास्त्र और दर्शन पर भी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी और अनुवाद किए।
कानून में भी उसने अच्छी पुस्तकें लिखीं है। उसी "आन द ला ऑव बेलमेंट्स" (1781) विशेष प्रसिद्ध है। 1774 से उसने अपना जीवन कानून के क्षेत्र में लगाया और 1783 में बंगाल के उच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में न्यायाधीश नियुक्त हुआ। उसी वर्ष उसे "सर" की उपाधि मिली।
भारत में उसने पूर्वी विषयों के अध्ययन में गंभीर रुचि प्रदर्शित की। उसने संस्कृत का अध्ययन किया और 1784 में "बंगाल एशियाटिक सोसाइटी" की स्थापना की जिससे भारत के इतिहास, पुरातत्व, विशेषकर साहित्य और विधिशास्त्र संबंधी अध्ययन की नींव पड़ी। यूरोप में उसी ने संस्कृत साहित्य की गरिमा सबसे पहले घोषित की। उसी के कालिदासीय अभिज्ञान शाकुंतलम के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीयदृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी। गेटे आदि महान कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए। कलकत्ते में ही 17 अप्रैल 1794 के इस महापंडित का निधन हुआ।