रामकृष्ण गोपाल भांडारकर
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रामकृष्ण गोपाल भांडारकर (6 जुलाई 1837 – 24 अगस्त 1925) भारत के विद्वान, पूर्वात्य इतिहासकार एवं समाजसुधारक थे। वे भारत के पहले आधुनिक स्वदेशी इतिहासकार थे। दादाभाई नौरोज़ी के शुरुआती शिष्यों में प्रमुख भण्डारकर ने पाश्चात्य चिन्तकों के आभामण्डल से अप्रभावित रहते हुए अपनी ऐतिहासिक कृतियों, लेखों और पर्चों में हिंदू धर्म और उसके दर्शन की विशिष्टताएँ इंगित करने वाले प्रमाणिक तर्कों को आधार बनाया। उन्होंने उन्नीसवीं सदी के मध्य भारतीय परिदृश्य में उठ रहे पुनरुत्थानवादी सोच को एक स्थिर और मज़बूत ज़मीन प्रदान की।
रामकृष्ण गोपाल भांडारकर | |
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जन्म |
6 जुलाई 1837 |
मौत |
24 अगस्त 1925 |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि का कारण | पौर्वात्य अध्ययन |
बच्चे | देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर (पुत्र) |
हस्ताक्षर |
भण्डारकर यद्यपि अंग्रेज़ों के विरोधी नहीं थे, पर वे राष्ट्रवादी चेतना के धनी थे। वे ऐसे प्रथम स्वदेशी इतिहासकार थे जिन्होंने भारतीय सभ्यता पर विदेशी प्रभावों के सिद्धान्त का पुरजोर और तर्कपूर्ण विरोध किया।
अपने तर्कनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ रवैये और नवीन स्रोतों के एकत्रण की अन्वेषणशीलता के बदौलत भण्डारकर ने सातवाहनों के दक्षिण के साथ-साथ वैष्णव एवं अन्य सम्प्रदायों के इतिहास की पुनर्रचना की। ऑल इण्डिया सोशल कांफ़्रेंस (अखिल भारतीय सामाजिक सम्मलेन) के सक्रिय सदस्य रहे भण्डारकर ने अपने समय के सामाजिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाते हुए अपने शोध आधारित निष्कर्षों के आधार पर विधवा विवाह का समर्थन किया। साथ ही उन्होंने जाति-प्रथा एवं बाल विवाह की कुप्रथा का खण्डन भी किया।
प्राचीन संस्कृत साहित्य के विद्वान की हैसियत से भण्डारकर ने संस्कृत की प्रथम पुस्तक और संस्कृत की द्वितीय पुस्तक की रचना भी की, जो अंग्रेज़ी माध्यम से संस्कृत सीखने की सबसे आरम्भिक पुस्तकों में से एक हैं।