मासाओका शिकि
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मासाओका शिकि (१८६७-१९०२) मैंजी युग के एक प्रख्यात जापानी कवि, लेखक, साहित्य समालोचक थे।[1] इन्होंने विशिष्ट जापानी कविता “होक्कु” को हाइकु (Haiku) का नाम नाम दिया।[2] शिकी को जापान में हाइकू के चार सर्वश्रेस्ठ कवियो में से एक माना जाता है। इसमे सामिल और तीन कवि है मात्सु बासो, कोबायाशी इस्सा एबंग योसा बुसोन।[3][4]
मासाओका शिकि | |
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जन्म | १४ अक्टूबर, १८६७ |
मौत | १९ सितंबर, १९०२ टोक्यो, जापान |
दूसरे नाम | मात्सुयामा शीकी |
पेशा | कवि |
राष्ट्रीयता | जापान |
विधा | हाइकु |
विषय | कविताएँ |
उल्लेखनीय कामs | यदि कोई पूछे (अंजली देवधर द्वारा हिंदी से हिंदी में अनुवाद) |
इनका बचपन का नाम था ‘सुनेनोरी’। ‘शिकि’ उपनाम चुना जिसका अर्थ है -कोयल जो कण्ठ में र्क्त आने तक गाए। तत्कालीन हाइकु कृत्रिमता से भरे थे। इस्सा के चिन्तन ने नए और पुराने की बीच द्वन्द्व को रेखांकित किया। इन्हे केवल ३५ वर्ष का जीवनकाल मिला। चित्रकारी और कविता की अभिरुचियाँ इन्हें बचपन से मिली थीं। ‘हाइकु’ नाम इन्हीं के समय में प्रचारित और स्थापित हुआ। इन्होंने सभी गलित रूढ़ियों और आस्थाओं का विरोध किया। गरीबी और तपेदिक की बीमारी ने इनको शय्या-सेवन के लिए बाध्य कर दिया। बहन ‘रित्सु’ ने इनकी खूब सेवा की। रुग्ण शरीर शिकि अन्तिम श्वास तक लिखते गए और अपना उपनाम सार्थक कर दिया।
शिकि की एक कविता है-[5]
यदि कोई पूछे
कहो मैं अभी जीवित हूँ
पतझड़ की हवा