फ़ोनीशियाई वर्णमाला
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फ़ोनीशियाई वर्णमाला फ़ोनीशिया की सभ्यता द्वारा अविष्कृत वर्णमाला थी जिसमें हर वर्ण एक व्यंजन की ध्वनी बनता था। क्योंकि फ़ोनीशियाई लोग समुद्री सौदागर थे इसलिए उन्होंने इस अक्षरमाला को दूर-दूर तक फैला दिया और उनकी देखा-देखी और सभ्यताएँ भी अपनी भाषाओँ के लिए इसमें फेर-बदल करके इसका प्रयोग करने लगीं। माना जाता है के आधुनिक युग की सभी मुख्य अक्षरमालाएँ इसी फ़ोनीशियाई वर्णमाला की संताने हैं। देवनागरी सहित, भारत की सभी वर्णमालाएँ भी फ़ोनीशियाई वर्णमाला की वंशज हैं।[1] इसका विकास क़रीब 1050 ईसा-पूर्व में आरम्भ हुआ था और प्राचीन यूनानी सभ्यता के उदय के साथ-साथ अंत हो गया।