पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय
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पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय (उर्दू: عدالت عظمیٰ پاکستان; अदालत-ए उज़्मा पाकिस्तान), इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत है और पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था का शीर्ष हिस्सा है और पाकिस्तानी न्यायिक क्रम का शिखर बिन्दु है। पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय, पाकिस्तान कानूनी और संवैधानिक मामलों में फैसला करने वाली अंतिम मध्यस्थ भी है। सर्वोच्च न्यायालय का स्थायी कार्यालय पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में स्थित है, जबकि इस अदालत की कई उप-शाखाएं, पाकिस्तान के महत्वपूर्ण शहरों में कार्यशील हैं जहां मामलों की सुनवाई की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय, पाकिस्तान को कई संवैधानिक व न्यायिक विकल्प प्राप्त होते हैं, जिनकी व्याख्या पाकिस्तान के संविधान में की गई है। देश में कई सैन्य सरकारों और असंवैधानिक तानाशाही सरकारों के कार्यकाल में भी सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं को स्थापित कर रखा है। साथ ही, इस अदालत ने सैन्य शक्ति पर एक वास्तविक निरीक्षक के रूप में स्वयं को स्थापित किया है और कई अवसरों में सरकारों की निगरानी की है।
पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय | |
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عدالت عظمیٰ پاکستان अदालत-ए उज़मा पाकिस्तान | |
فاحكم بين الناس بالحق फ़ा'हुक़म बिन अल्'नास बा'हक़ अतः लोगों का आंकलन सत्य के आधार पर करो (क़ुरान 38:26) | |
स्थापना |
14 अगस्त 1947 बतौर संघीय अदालत 2 मार्च 1956; 68 वर्ष पूर्व (1956-03-02) मौजूदा अवस्था में |
अधिकार क्षेत्र | पाकिस्तान |
स्थान | इस्लामाबाद |
निर्वाचन पद्धति | कर्यपालिका चयन (योग्यता आधारित) |
प्राधिकृत | पाकिस्तान का संविधान |
निर्णय पर अपील हेतु | पाकिस्तान के राष्ट्रपति , क्षमादान / निर्णय में परिवर्तन हेतु |
न्यायाधीशको कार्यकाल | 65 वर्ष की आयु तक |
पदों की संख्या | 1 मुख्य न्यायाधीश + 16 न्यायाधीश |
जालस्थल | www.supremecourt.gov.pk |
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश | |
वर्तमान | न्यायमूर्ति अनवर ज़हीर जमाली |
कार्य प्रारम्भ | 10 सितंबर 2015 |
मुख्य पद समाप्ति | बा हाल |
इस अदालत के पास, सभी उच्च न्यायालयों(प्रांतीय उच्च न्यायालयों, जिला अदालतों, और विशेष अदालतों सहित) और संघीय अदालत के ऊपर अपीलीय अधिकार है। इसके अलावा यह कुछ प्रकार के मामलों पर मूल अधिकार भी रखता है। सुप्रीम कोर्ट एक मुख्य न्यायाधीश और एक निर्धारित संख्या के वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा निर्मित होता है, जो प्रधानमंत्री से परामर्श के बाद राष्ट्रपति द्वारा नामित किया जाता है। एक बार नियुक्त न्यायाधीश को, एक निर्दिष्ट अवधि को पूरा करने और उसके बाद ही रिटायर होने की उम्मीद की जाती है, जब तक कि वे दुराचार के कारण सर्वोच्च न्यायिक परिषद द्वारा निलंबित नहीं किये जाते हैं।