पत्ती
पौधे के अंग / From Wikipedia, the free encyclopedia
पत्र या पर्ण पार्श्विक, चपटी संरचना होती है जो तने पर लगी रहती है। यह गाँठ पर होती है और इसके कक्ष में कली होती है। कक्षीय कली बाद में शाखा में विकसित हो जाती हैं। पत्र प्ररोह के शीर्षस्थ विभज्योतक से निकलती हैं। ये पत्र अग्राभिसारी रूप में लगी रहती हैं। ये पौधों के बहुत ही महत्त्वपूर्ण कायिक अंग है, क्योंकि ये भोजन का निर्माण करती हैं।
एक प्ररूपी पत्र के तीन भाग होते हैं पर्णाधार, पर्णवृन्त तथा स्तरिका। पत्र पर्णाधार की सहायता से तने से जुड़ी रहती है और इसके आधार पर दो पार्श्विक छोटी पत्र निकल सकती है जिन्हें अनुपर्ण कहते हैं। एकबीजपत्री में पर्णाधार चादर की तरह फैलकर तने को पूरा अथवा आंशिक रूप से ढक लेता है। कुछ लेग्यूमी तथा कुछ अन्य पौधों में पर्णाधार फूल जाता है। ऐसे धार को पर्णवृन्ततल्प कहते हैं। पर्णवृन्त पत्र को इस तरह सजाता है जिससे कि इसे अधिकतम सूर्यौज्ज्वल्य मिल सके। लम्बा पतला लचीला पर्णवृन्त स्तरिका को वायु में हिलाता रहता हैं ताकि ताजी वायु पत्र को मिलती रहे। स्तरिका पत्र का हरा तथा विस्तृत भाग हैं जिसमें शिराएँ तथा शिरिकाएँ होती है। इसके मध्य में एक सुस्पष्ट शिरा होती हैं जिसे मध्य-शिरा कहते हैं। शिराएँ पत्र को दार्ढ्य प्रदान करती है और जल, खनिज तथा भोजन के स्थानान्तरण हेतु नलिकाओं की तरह कार्य करती हैं। विभिन्न पौधों में स्तरिका की आकृति उसके किनारे, शीर्ष, सतह तथा छेदन में वैविध्य होती है।