नमाज़
इस्लाम में नमाज़ को उच्च माना जाता है। इससे संघटित सब संघटित होते है । / From Wikipedia, the free encyclopedia
नमाज़ (उर्दू: نماز) या सलाह (अरबी: صلوة), नमाज़ एक अरबी शब्द है। ईश्वर की वंदना करना ही नमाज है। उर्दू में अरबी शब्द सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज पढ़ने का आदेश ताकीद के साथ दिया गया है। इस्लाम के आरंभकाल से ही नमाज की प्रथा और उसे पढ़ने का आदेश है। यह मुसलमानों का बहुत बड़ा कर्तव्य है और इसे नियमपूर्वक पढ़ना पुण्य तथा त्याग देना पाप है।
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सलात / सलाह | |
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नमाज़ के दौरान रुकू करते हुए मुस्लिम | |
आधिकारिक नाम | صلاة |
अन्य नाम | इस्लाम में उपासना |
अनुयायी | मुस्लिम |
प्रकार | इस्लामीय |
उद्देश्य | फ़िक़ह के मुताबिक़ अल्लाह की इबादत का तरीक़ा. |
अनुष्ठान |
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समान पर्व | तिलावत, रुकू, सुजूद |
इस्लाम धर्म में हर मुस्लमान पर पांच इब्दात फ़र्ज़ हैं जिन्हे पूरा करना हर मुस्लमान पर जरुरी हैं यानि फ़र्ज़ हैं। इन्ही पांच फ़र्ज़ में से एक फ़र्ज़ नमाज़ हैं नमाज़ दिन में पांच वक़्त पढ़ी जाती हैं हर नमाज़ का वक़्त अलग अलग होता हैं मर्द मुसलमानो को नमाज़ मस्जिद में पढ़ना जरुरी होता हैं और औरतो को घर में ही नमाज़ पढ़ना जरुरी हैं औरत मस्जिद में नमाज़ पढ़ सकती और मर्द को घर में फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ना जरुरी नहीं होता हैं अगर कोई कारन से मर्द मस्जिद ना जा सके तो मर्द घर में ही नमाज़ पढ़ सकता हैं ये इस्लाम में शर्त हैं।
इस जहां में फैली सभी मोमिन को जरूर नमाज़ अदा करनी चाहिए कि नमाज़ अदा करने से हम सभी का रब अल्लाह तबारक व तआला अपने नेक बन्दों से खुश होता है और दुनिया व आखिरत में अपने नेक बन्दों का रास्ता आसान फरमाता है।/[उद्धरण चाहिए] [1]