ख़िलाफ़त
सरकार का इस्लामी रूप / From Wikipedia, the free encyclopedia
मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद इस्लाम के प्रमुख को खलीफ़ा कहते थे। इस विचारधारा को खिलाफ़त कहा जाता है। इस्लामी मान्यता के अनुसार, ख़लीफ़ा को जनता द्वारा चुना जाता है अर्थात ख़लीफ़ा जनता का प्रतिनिधि व सेवक होता है। प्रथम चार ख़लीफ़ाओं का शासनकाल इस्लामी सिद्धांतो के अनुसार था और इन चारों ख़लीफाओं (अबूबक्र, उमर, उस्मान तथा अली) को राशिदुन कहते हैं।
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इस के बाद ख़िलाफ़त की जगह राजतन्त्र आ गया यघपि राजा जोकि वंशानुगत होते थे, स्वयं को 'ख़लीफ़ा' ही कहलवाते रहे। उम्मयद, अब्बासी और फ़ातिमी खलीफा जो क्रमशः दमिश्क, बग़दाद और काहिरा से शासन करते थे, केवल नाममात्र के ख़लीफ़ा थे जबकि इनकी वास्तविकता राजतन्त्र था। इसी तरह इसके बाद उस्मानी (ऑटोमन तुर्क) खिलाफ़त आया। उस्मानी साम्राज्य के अंत तक यह नाममात्र का ख़लीफ़ा पद सामुदायिक एकता का प्रतीक बना रहा। यघपि इस्लामी जगत मे इन्हें ख़लीफ़ा कहा तो जाता है किंतु वास्तविक रूप मे इन्हें ख़लीफ़ा नहीं बल्कि बादशाह ही माना जाता है।
मुहम्मद साहब के नेतृत्व में अरब बहुत शक्तिशाली हो गए थे। उन्होंने एक बड़े साम्राज्य पर अधिकार कर लिया था जो इससे पहले अरबी इतिहास में शायद ही किसी ने किया हो। खलीफ़ा बनने का अर्थ था - इतने बड़े साम्राज्य का मालिक। अतः इस पद को लेकर विवाद होना स्वाभाविक था।