कैलाश (तीर्थ)
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कैलाश (तीर्थ) हिमालय के तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है जिसे 'गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलास के बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। कदाचित प्राचीन साहित्य में उल्लिखित मेरु भी यही है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं रावण, भस्मासुर आदि ने यहाँ तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और बाक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।
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जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्व है। वे कैलास को अष्टापद कहते है। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध साहित्य में मानसरोवर का उल्लेख अनवतप्त के रूप में हुआ है। उसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। बौद्ध अनुश्रुति है कि कैलास पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है। उसकी उपत्यका में रत्नखचित कल्पवृक्ष है। डेमचोक (धर्मपाल) वहाँ के अधिष्ठाता देव हैं; वे व्याघ्रचर्म धारण करते, मुंडमाल पहनते हैं, उनके हाथ में डम डिग्री और त्रिशूल है। वज्र उनकी शक्ति है। ग्यारहवीं शती में सिद्ध मिलेरेपा इस प्रदेश में अनेक वर्ष तक रहे। विक्रमशिला के प्रमुख आचार्य दीपशंकर श्रीज्ञान (982-1054 ई0) तिब्बत नरेश के आमंत्रण पर बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ यहाँ आए थे।
कैलास पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलास है। इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है। तिब्बती (भोटिया) लोग कैलास मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।