कंधा
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कन्धा या स्कन्ध तीन अस्थियों का बना होता है : कण्ठास्थि, स्कन्धास्थि और प्रगण्डास्थि (ऊपरी बाहु (प्रगण्ड) की अस्थि) और उसके साथ ही मांसपेशियाँ, स्नायु और कण्डरा भी सम्मिलित हैं। कन्धा के अस्थियों के बीच के सन्धियों से स्कन्ध सन्धि बनता है। मानव के शरीर रचना विज्ञान के अनुसार, स्कन्ध सन्धि में शरीर के वे भाग होते है जहाँ प्रगण्डास्थि स्कन्धास्थि से जुड़ती है।[1] कंधा सन्धियों के क्षेत्र में संरचनाओं का समूह है।[2]
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कंधा | |
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मानव कंधे के जोड़ का चित्र | |
Capsule of shoulder-joint (distended). Anterior aspect. | |
लैटिन | articulatio humeri |
ग्रे की शरीरिकी | subject #81 313 |
इस सन्धि में दो प्रकार के उपास्थि होते हैं। पहली प्रकार की उपास्थि होती है सफ़ेद उपास्थि जो हड्डियों की सीमाओं पर होती है (जिसे संधि उपास्थि कहा जाता है). ये हड्डियों को एक दूसरे पर फिसलने और खिसकने देती है। जब इस प्रकार की उपास्थि घिसने लगती है (एक प्रक्रिया जिसे गठिया कहते है), जोड़ दर्दनाक और कठोर हो जाता है। कंधे में दुसरे प्रकार की उपास्थि होती है लेब्र्म, जो संधि उपास्थि से साफ तौर पर अलग होती है। यह उपास्थि गोला ओए गर्तिका जोड़ के सिरों पर उपस्थित उपास्थि से अधिक रेशेदार और कठोर होती है। इसके अलावा यह उपास्थि गर्तिका जहाँ जुडती है उसके ऊपर भी पाई जाती है।[3]
कंधा हाथ और भुजाओं में गति हेतु प्रत्यास्थ होना चाहिए और उठाने, खीचने और धक्का देने जैसी क्रियाओं हेतु मजबूत भी होना चाहिए। इन दो कार्यों के बीच समझोते से कई प्रकार की कंधे से जुडी समस्याएँ हो सकती है जो की अन्य जोड़ जैसे, नितंब में नहीं होती।