ओंकारनाथ ठाकुर
भारतीय शास्त्रीय संगीतकार / From Wikipedia, the free encyclopedia
ओंकारनाथ ठाकुर (1897–1967) भारत के शिक्षाशास्त्री, संगीतज्ञ एवं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार थे। उनका सम्बन्ध ग्वालियर घराने से था।
सामान्य तथ्य पण्डितओंकारनाथ ठाकुर, पृष्ठभूमि ...
ओंकारनाथ ठाकुर | |
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पृष्ठभूमि | |
जन्म | 24 जून 1897[1] जहाज, खम्भात (गुजरात) बड़ौदा राज्य, बॉम्बे प्रेसिडेन्सी |
निधन | 29 दिसम्बर 1967(1967-12-29) (उम्र 70)[2] मुम्बई, महाराष्ट्र |
विधायें | हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत |
पेशा | संगीत शिक्षक, संगीतविद् |
वाद्ययंत्र | गायन |
सक्रियता वर्ष | 1918–1960 के दशक तक |
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उन्होने वाराणसी में महामना पं॰ मदनमोहन मालवीय के आग्रह पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत के आचार्य पद की गरिमा में वृद्धि की। वे तत्कालीन संगीत परिदृष्य के सबसे आकर्षक व्यक्तित्व थे। पचास और साठ के दशक में पण्डितजी की महफ़िलों का जलवा पूरे देश के मंचों पर छाया रहा। पं॰ ओंकारनाथ ठाकुर की गायकी में रंजकता का समावेश तो था ही, वे शास्त्र के अलावा भी अपनी गायकी में ऐसे रंग उड़ेलते थे कि एक सामान्य श्रोता भी उनकी कलाकारी का मुरीद हो जाता। उनका गाया वंदेमातरम या 'मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो' सुनने पर एक रूहानी अनुभूति होती है।